

देवान्नद ठाकुर , लघु कथा
एक बहुत शुशील परिवार रहा । जवन अगल बगल कय गावं महिया बहुत प्रशंसा कमाया रहा। वह एक छोट परिवार होयक बावजुद भी सबकय नजर महिया अच्छा परिवार रहा। समय बितत गय …..। कुछ समय बाद वहि परिवार मे तीन बच्चेन कय जन्म भवा । बड़ा लडका कय नाम रमेश,माझिल लडका कय नाम प्रमेश अव छोट वाला लडका कय नाम दिवेश रख्खा गय।
एक दिन अपने बच्चेन कय भबिष्य कय चिन्ता करत करत महतारी बिना कुछ बनाएं – खाएं सुत गई । बच्चेन कय भुख कय ख्याल भी नाई करिन,अपने चिन्ता कय आगे। जब सब लोग भुखे सुते तब आपस महिया बात-चीत करे लागे कि आज काहे नाई कुछ खाएक मिला ,माई कवन बात कय अव काहे यतना चिन्ता करत हि ।……रहते रहते पता चला कि आज कय समय मे सब जागह हम्मन कय वाह वाही हय लेकिन तोहरे पता नाई कइसन रहबो, यही बात कय चीन्ता लाग हय हम्मे।
महतारी कहिन कि अब रात होय गवा , सब लोग सुतो कल ई चिन्ता कय निकास निकाला जाई। जब सुबेर भवा तब तीनो बच्चेन कय नहुवाय – धोवाय कय वही गाँव कय नजिकै एक महात्मा जी रहत रहे ,वन्ही कय पास जायके तयारी भवा। एक छिन बाद सब लोग महात्मा जी कय आश्रम मे पहुच गए । महात्मा जी पुछिन,” बच्चा कइसे अवाही भवा “। तब महतारी सब बात बताइन्। महात्मा जी कहिन कि तीनो बच्चेेन कय हमरे पास लाओ बिटिया । सब बच्चे महात्मा जी कय पास गए, महात्मा जी एक-एक केरा तीनो बच्चेन कहिया खाएक दिहिन।
बडा वाला बच्चा केरा खायके छिल्का गाय कय खिलाय दिहिस । माझिल वाला केरा खायके छिल्का कुडा़दान मे डाल दिहिस , अव छोटा वाला बच्चा केरा खाय के छिल्का रास्ता महिया फेक दिहिस । इ सब देख कय महतारी कय आउर चिन्ता बढय गय। तब महतारी महात्मा जी से पुछत हिन कि बाबा हमार बच्चे कइसन हय। महात्मा जी कहत हय कि बिटिया तोहार सबसे बडा वाला बच्चा धर्मात्मा निकली, माझिल वाला ठीकै रही लेकिन सबसे छोट वाला दुष्ट बच्चा रही । काहे से बडा वाला अपने साथ -साथ दुसरेक भी ख्याल करी , माझिल वाला दुसरेक मद्दत नाई करी तो दुख भी नाई दी, लेकिन छोट वाला सिर्फ खाली आपन स्वार्थ पिछे, दुसरेक कउनो परवाह नाई करी।
सब देख कय महतारी तीनो बच्चेन कय साथ घर लौट आई।
निष्कर्ष : जइसन कर्म करिहे , वइसे फल मिलि।
