
देवानन्द ठाकुर
एक गाव महिया दुई परानी (पति-पत्नि) रहत रहे। दुनो लोग महिया बहुत प्यार रहा , वकरे नाते वनलोग कय जिन्दगी बहुत अमन चमन से बितात आवत रहा। वही गाव कय आसपास उ जोडी जइसन सुन्दर अव आपसी समझदारी आउर कउनो परिवार महिया ना होयक नाते लोगेन बीच बहुत सराहना जात रहे। सुन्दर ,गोरहर अव नीक जोडी रहा। आउर वनकय एक बिटिया भी रही। बिटिया भी अपने दादा माई जइसन रही।
समय बितत गय कुछ समय बाद एक लड़का जन्म लिहिस वही परिवार मे।लड़का जन्मते ही वैह मरद मेहरारुमे बिबाद होयक शुरु होय गवा। काहे से कि परिवार कय जेतना लोग रहे सब गोरहर अव सुन्नर रहे लेकिन जब लड़का पैदा भवा ,तब करिया(काला) पैदा भवा।
शुरु -शुरुमे खुशी रहा कि हम्मन कय लड़का भव लेकिन बीच -बीच महिया बिबाद भी होय लाग रहा। एक दिन रात कय सुतेक समय दुनो परानी मे बतकहानी होय लाग।उ बतकहानी झगडा़ कय रुप लय लिहिस। मरद अपने मेहरारुक दोष लगावै लाग कि इ दुसरेक बच्चा होय।तब बिबाद कय सीमा नाई रहि गवा । होत-जात चेक जाच करावैक बात अव दुनो लोगमे मन मुटाव होय गवा। हसत खिलत जिन्दगी बरबाद होय लाग। आपसी परेसानी भी बढ़ गवा।
चेक करावै लैजायक समय रास्ता मे एक महात्मा जी मिलत हय। तब वैह महात्मा जी से पुरा कहानी बतावत हय।सब जान कय महात्मा कहत हय कि ई बच्चा तोहार आपन होय। केहु कय कउनो दोष नाई हय। दोष सिर्फ तोहरे घर कय हय। इ बच्चा पे एक करिया (काला) फरचाही पढ़ गवा हय वही कय नाते लड़का करिया हय। महात्मा कय बात सुनकय दुनो लोग कहिया अश्चार्य लग जात हय।
वहा से महात्मा सिधा वह परिवार कय घर जात हय,सब कय साथ। तब लड़कवा कय दादा कहत हय कि, महात्मा जी वैसे हमार घरव भी सफेद हय , तब कैसे मानली कि घरमे करिया फारचाही पढ़ गवा हय। तब महात्मा जी कहत हय ,जहा तोहरे सुतत हव उ कमरा महिया लय चलो। वहा जाय कय बाद देखत हय कि दिवाल पहिया एक करिया(काला) कलर कय बनावल तस्बीर टागॉ रहा वही का देखाय कय कहत हय महात्मा जी वही कय नाते बच्चा करिया (काला) होय गवा हय।
तस्बीर वनकय लड़की स्कुल महिया बनायकय लय गय रही ,वहा वैह तस्बीर कय बहुत प्रशंसा होयक नाते उ तस्बीरका लाय कय रुम महिया सजाय दिहिन तब से उ तस्बीर रुम महियी टागॉ रहि गवा । जवनेक नाते लड़का करिया होय गवा रहा।
तब जायकय मान कि हा हमार ही लड़का होय अव उ तस्बीरका निकाल कय फेक दिहिस। जब पुरा कलह खतम होय गवा तब फिरसे दुनो लोहमे तालमेल रहय लाग।
